• 2 years ago
भगवान दादा को किसने बर्बाद किया?Vijay Pandey Exclusive Bollywood Stories
Who ruined the Bhagwan Dada ?
Actor om prakash , music director C ramachanran,Lyricist Rajendra kerishna is a real friend of Bhagwan Dada


मधुजा मुखर्जी की किताब ‘ द मिसिंग स्टोरी ऑफ ललिता पवार’ में भगवान दादा का एक मशहूर वाक्या अभिनेत्री ललिता पवार से भी जुड़ा हुआ है. साल 1942 में फ़िल्म ‘जश्न-ए-आजादी’ के सूट में एक दृश्य को फिल्माते वक्त उन्होंने ललिता पवार को गलती से तेज थप्पड़ मार दिया. यह चोट इतनी गंभीर थी कि ललिता पवार की एक आंख हमेशा के लिए खराब हो गई. हालांकि इस बात के लिए भगवान दादा को उम्र भर मलाल रहा लेकिन ललिता पवार जो कि एक उभरती हीरोइन थी, इस घटना के बाद वह हिंदी सिनेमा की चरित्र अभिनेत्री बन कर रह गई.
राजकपूर भगवान दादा की प्रतिभा और लोकप्रियता से प्रभावित थे. उन्होंने ही भगवान दादा को सामाजिक संदेश वाली फिल्में भी बनाने को कहा था . दादा ने 1951 में अपनी सबसे मशहूर फिल्म ‘अलबेला’ बनाई जिसमें गीता बाली उनकी हीरोइन थी. इस फिल्म ने भगवान दादा को सफलता के सातवें आसमान पर चढ़ा दिया. इसकी लोकप्रियता भारत के पार अफ्रीकी देशों तक पहुँची. इसी फिल्म ने उनको खासी शोहरत, पैसा, गाड़ी, बंगला सब कुछ दिया. इस फिल्म के गीत खासे मशहूर हुए ‘शोला जो भड़के, दिल मेरा धड़के’, ‘शाम ढले, खिड़की के तले, तुम सीटी बजाना छोड़ दो’, ‘धीरे से आजा अँखियन में निंदिया आजा रे आजा’, – जैसे गीत लोगों की आज तक जुबान पर है.वह संभवत: हिंदी सिने जगत के शुरुआती दौर के पहले डांसिंग और एक्शन स्टार रहे. भगवान दादा खुद में फिल्मों का टोटल पैकेज थे. उनकी सिनेमाई यात्रा के पड़ाव में मुख्य/चरित्र अभिनेता, नर्तक, एक्शन स्टार, लेखक, निर्माता, निर्देशक तक की भूमिकाएं हैं. सिनेमा के अपने बेहतर दिनों में उन्होंने चेंबूर में जागृति फ़िल्म स्टूडियो की स्थापना की थी. अल्प समय के लिए ही सही वह वाकई किस्मत के धनी थे, जिनके लिए सिनेमा पैशन था और अपने इसी पैशन के लिए मेहनत करते हुए वह दादर के लालूभाई मेंशन चाल वाया परेल के मिल से चलकर जुहू के अपने 25 कमरों के बंगले और सात शानदार मोटरकारों के मालिक भी बने लेकिन यह इंडस्ट्री और इसका ढब भी अजब है. यह सब चार दिन की चांदनी की तरह आई और उसी तरह चली गईं. इसी फिल्म ने उनको खासी शोहरत, पैसा, गाड़ी, बंगला सब कुछ दिया. इस फिल्म के गीत खासे मशहूर हुए ‘शोला जो भड़के, दिल मेरा धड़के’, ‘शाम ढले, खिड़की के तले, तुम सीटी बजाना छोड़ दो’, ‘धीरे से आजा अँखियन में निंदिया आजा रे आजा’, – जैसे गीत लोगों की आज तक जुबान पर है.वह संभवत: हिंदी सिने जगत के शुरुआती दौर के पहले डांसिंग और एक्शन स्टार रहे. भगवान दादा खुद में फिल्मों का टोटल पैकेज थे. उनकी सिनेमाई यात्रा के पड़ाव में मुख्य/चरित्र अभिनेता, नर्तक, एक्शन स्टार, लेखक, निर्माता, निर्देशक तक की भूमिकाएं हैं. सिनेमा के अपने बेहतर दिनों में उन्होंने चेंबूर में जागृति फ़िल्म स्टूडियो की स्थापना की थी. अल्प समय के लिए ही सही वह वाकई किस्मत के धनी थे, जिनके लिए सिनेमा पैशन था और अपने इसी पैशन के लिए मेहनत करते हुए वह दादर के लालूभाई मेंशन चाल वाया परेल के मिल से चलकर जुहू के अपने 25 कमरों के बंगले और सात शानदार मोटरकारों के मालिक भी बने लेकिन यह इंडस्ट्री और इसका ढब भी अजब है. यह सब चार दिन की चांदनी की तरह आई और उसी तरह चली गईं.
पर इसके बाद की कहानी पीड़ादायक है. इसके बाद उन्होंने गीता बाली के साथ ही ‘झमेला’ और ‘लाबेला’ बनाई. यह दोनों फिल्में

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