ये आवाज अब हमारे बीच नहीं है... इस गीत के जरिए अनगिनत लोगों की रोने पर मजबूर करने वाली लता दीदी जा चुकी है.. अपने पीछे गीत संगीत की एक महान विरासत छोड़कर.. ये गीत बजेगा.. हर बार बजेगा.. लगातार बजेगा.. स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और ऐसे किसी आयोजन में जो देशभक्ति से ओतप्रोत होगा.. लता दीदी फिर याद आएंगी.. रूलाएंगी.. भाव विभोर कर जाएंगी.. 1963 में चीन से मिली करारी हार के बाद इस गाने का जन्म हुआ था.. लिखने वाले थे कवि प्रदीप.. संयोग देखिए कि गाना लिखने वाले कवि प्रदीप उज्जैन के बड़नगर में पैदा हुए और गाने वाली लता मंगेशकर इंदौर में.. मप्र की धरती पर पैदा हुई इन दोनों हस्तियों के साथ 6 फरवरी की तारीख का संयोग भी जुड़ गया है.. 6 फरवरी 2022 को सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर 92 साल की लता दीदी इस दुनिया को छोड़कर चली गईं.. और 1915 में इसी 6 फरवरी को कवि प्रदीप का जन्म हुआ था.. दोनों ने मिलकर इतिहास रचा है..
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