श्री कृष्ण-सुदामा मिलन देख भावुक हुए श्रद्धालू, आंखों से बही अश्रुधारा

  • 3 years ago
शाजापुर। जीवन में मित्रता उतनी ही जरूरी है जितना जीने के लिए सांसे। यदि मित्र ही नहीं होगा तो हम अपनी भावना, अपनी बात किससे कहेंगे। बिना मित्र के जीवन पूरी तरह निरर्थक है। मित्रता भी अच्छे लोगों से करना चाहिए जो जीवन की दिषा बदल दे। यदि गलत व्यक्ति की संगत में बैठ गए तो जीवन की दषा ही बदल जाएगी और दिषाहीन हो जाओगे। उक्त आर्षीवचन पं. अनिल शर्मा ने रविवार को हाऊसिंग बोर्ड कालोनी मे चल रही श्रीमद भागवत कथा के अंतिम दिवस श्री कृष्ण-सुदामा प्रसंग सुनाते हुए कही। पं. शर्मा ने कहा कि मित्रता सुदामा जैसी होनी चाहिए जो दीन, दुखी और परेषान होने के बाद भी अपने मित्र तीनों लोकों के स्वामी को अपनी व्यथा सुनाकर दुखी नहीं करना चाहता और समझने वाला कान्हा जैसा होना चाहिए जो अपने मित्र को देखते ही उसकी सारी परेषानी हर लेता है। मित्रता को ईष्वर ने भी सबसे ऊंचा माना है। इसीलिए तो तीनों लोकों के स्वामी ने अपने मित्र के पैर धोने में कतई संकोच नहीं किया और उसकी दषा देखकर उनकी आखे भी गिली हो गई थी और उसी से प्रभु ने अपने मित्र के पैर धोकर उसकी दरिद्रता को दूर कर दिया था।

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