Govind Damodar Stotram- गोविन्द दामोदर स्तोत्र (भावार्थ सहित)

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श्रीबिल्वमंगल : परिचय
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सदियों पहले बिल्वमंगल नामक ब्राह्मण के मन को चिन्तामणि वेश्यारूपी ठगिनी माया ने ऐसा आसक्त किया कि वह अपने पिता की मृत्यु पर भी नहीं आया। गांव वालों ने उसे धर-पकड़कर पिता का श्राद्ध कराया। शाम होते ही बिल्वमंगल लोगों की कैद से छूटकर घनघोर बारिश में कोई नौका न मिलने से मुर्दे को पकड़कर नदी पार कर और काले नाग को रस्सी समझकर दीवार फांदकर चिन्तामणि वेश्या के घर पहुंचा। चिन्तामणि जिस प्रकार रूप की रानी थी उसी प्रकार संगीत की भी ज्ञानी थी। संगीत ने उसे भगवान के सौन्दर्य आदि गुणों व लीलाओं से परिचित करा दिया था। आज ब्राह्मण युवक के इस अध:पतन से अत्यधिक व्यथित होकर वह रोने लगी और उसके पैरों पर गिरकर बोली-'तुम ब्राह्मण हो किन्तु मुझसे भी ज्यादा गिर गए हो। भगवान से प्रेम करके तुम मुझे और अपने को बचाओ। भगवान तो सौन्दर्य-माधुर्य आदि के सिन्धु हैं, उन सिन्धु के एक बिन्दु के किसी एक कतरे में सारी दुनिया की सुन्दरता, मृदुता और मधुरता है। तुम उधर बढ़ो और मेरा तथा अपना भी कल्याण करो। बिल्वमंगल ने अपने पतित पूर्व संस्कारों को मिटाने के लिए बेल के पेड़ के कांटे से अपनी आंखें फोड़ लीं।

चिन्तामणि के वचन सुनकर बिल्वमंगल के हृदय में भगवत्प्रेम का बीज प्रस्फुटित हुआ और वह चल दिया उस श्रीकृष्णप्रेमरूपी अमृतसिन्धु में डुबकी लगाने। उसने ऐसा सरस गीत गाया कि लाखों को तार दिया। बिल्वमंगल के वे रस आज भी हमें रसासिक्त कर रहे हैं। बिल्वमंगल ने चिन्तामणि को अपना गुरु माना और अपने ग्रन्थ 'कृष्णकर्णामृत' का मंगलाचरण 'चिन्तामणिर्जयति' से किया।श्रीगोविन्द दामोदर स्तोत्रम् की रचना श्रीबिल्वमंगल ठाकुर द्वारा की गयी है जिन्हें 'श्रीलीलाशुक' कहा जाता है। यह स्तोत्र ७१ श्लोकों का है किन्तु यहां इसके कुछ प्रचलित श्लोक ही हिन्दी अनुवाद सहित दिए जा रहे हैं।

स्तोत्र पाठ से लाभ:
भगवान श्रीकृष्ण के इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने से भगवान साधक के चित्त में प्रवेश कर विराजने लगते हैं जिससे उसके समस्त कल्मष धुल जाते हैं, चित्त व अन्त:करण रूपी दर्पण स्वच्छ हो जाता है और जो आनन्दामृत प्रदान करने के साथ मनुष्य को मोक्ष भी प्रदान करता है।

Song credit- Aishvarya Majumdar and Harsh Patel
Lyrics Subtitle & Editing - Prashant Agrahari

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