इंदौर: शौचालय से निकलकर सचिवालय में अटकी प्रतिभा, साधारण लड़की की असाधारण कहानी

  • 4 years ago
एक साधारण से ब्राह्मण परिवार की लड़की की असाधारण कहानी, सुलभ शौचालय में रहकर देश के लिए एशियन चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली मप्र के इंदौर शहर की जूही झा बीते दो साल से नौकरी के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही है। सरकारी नियमों के तहत विक्रम पुरस्कार विजेताओं को शासकीय नौकरी मिलती है, लेकिन जूही को 2 साल बीतने पर भी नहीं मिली। उधर 28 अगस्त को प्रदेश सरकार ने नए खेल अवार्ड विजेताओं के नामों की घोषणा कर दी, लेकिन पुरानों की अब तक कोई सुध नहीं ली है। शौचालय के एक कमरे से शुरू हुआ जूही का सफर सचिवालय में बंद फाइल में अटक कर रह गया है। दरअसल जूही का परिवार शहर के एक सुलभ शौचालय में रहता था क्योंकि पिता सुबोध कुमार झा की यहीं पर नौकरी थी। खो-खो खिलाड़ी जूही बताती हैं, खराब लगता था कि हम सुलभ शौचालय में रहते हैं, लेकिन गरीबी के कारण लाचार थे। मैं एक निजी स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर बनी। 2016 में एशियन चैंपियनशिप में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक जीता। 2018 में विक्रम पुरस्कार की घोषणा हुई। नियमानुसार विक्रम अवार्ड विजेता को शासकीय नौकरी एक साल के भीतर मिलती है, लेकिन जूही को अब तक नही मिली। जूही जिस निजी स्कूल में काम करती थी उस स्कूल को लगा कि सरकारी नौकरी मिलने पर वह बीच सत्र में चली जायगी तो उन्होंने भी नौकरी से हटा दिया। तब से वह लगातार सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही है। इस बीच प्रदेश में तीन बार सरकारें बदल गईं। जूही की माने तो कोरोना काल के चलते मामला आगे बढ़ाया जा रहा है, लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर इसी तरह मध्यप्रदेश के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ इस तरह का व्यवहार होगा तो इसका असर आने वाले दिनों में अन्य प्रतिभावान खिलाड़ियों पर पड़ेगा।

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