अश्वत्थामा ने क्यों भारत के इतिहास पर बात की - साक्षी है समय; Episode 56

  • 5 years ago
उपन्यास साक्षी है समय - https://amzn.to/2rRuHzh

मैंने अनेक बार स्वयं से प्रश्न पूछा है कि, यह उपन्यास क्यों? क्या इतिहासबोध ने प्रेरित किया अथवा स्वयं अश्वत्थामा ने? असीरगढ के किले में उस मंदिर के निकट खड़ा था, जहाँ यह मान्यता है कि प्रत्येक सुबह शिवलिंग पर जल-फूल चढ़े मिलते हैं। जनश्रुतियों के अनुसर अश्वत्थामा किले में भटकते देखे गये हैं, वे नित्य इस मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं। अपनी सोच को कितना भी वैज्ञानिक समझते हों, किसी स्थल से जुड़ी ऐसी मान्यतायें रोमांचित करती हैं। गाईड जो मुझे किले की बारीकियाँ बता रहा था, उसने बताया कि बुरहानपुर और आसपास अनेक हैं जो यह दावा करते हैं कि उन्होंने अश्वत्थामा को देखा है। ऐसा दावा करने वाले जिस पहले व्यक्ति से मुझे मिलवाया गया, वह मुसलमान गड़रिया था। जो आकार प्रकार उसने बताया, अपनी डायरी में लिखा और उन अन्य व्यक्तियों से मिलना सुनिश्चित किया जो अश्वत्थामा को देखने का दावा करते थे। कई रोचक दावों से सामना हुआ, किसी ने बताया कि महाभारत के अभिशप्त पात्र को देखने वाला अंधा हो जाता है, विक्षिप्त हो जाता है.....। कुछ ऐसे भी मिले जो न अंधे थे न विक्षिप्त। सभी प्राप्त विवरणों में कतिपय समानतायें थीं कद-काठी, जख्मों से भरे शरीर का विवरण, मस्तक पर बड़ा घाव… मिलने वाले से तेल की मांग करना।

अज्ञात को जानने के लिये गणित में ‘एक्स’ का मान ‘प्रश्नचिन्ह’ लगा कर उसे हल करने का प्रयास किया जाता है। अश्वत्थामा मेरे लिये प्रश्नचिन्ह थे, मैंने उन्हें जनमान्यताओं के आधार पर गम्भीरता से जानने का प्रयास आरम्भ किया। इस प्रक्रिया में इस उपन्यास-श्रंखला को लिखने का विचार कौंधा। मैंने सूत्र से प्रश्नचिह को हटा कर “एक्स” का मान “अश्वत्थामा” कर दिया। ऐसा करते ही, महाभारत के इस रहस्यमय चरित्र से बड़ा कोई सूत्रधार नहीं, जो अतीत को वर्तमान से जोड़ सकता है। लेखक होने के विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मुझे अपनी कृति के माध्यम से अश्वत्थामा को जीवित करना ही था, तभी अतीत और वर्तमान के बीच एक सेतु निर्मित किया जा सकता था। इस तरह मुझे बहुत बड़ा केनवास उपलब्ध हो गया, जिसपर मैं महाभारत और उसके बाद के कालखण्ड को अपनी सोच-समझ के अनुरूप रच सकता था। कल्पना कीजिये, अश्वत्थामा जीवित हैं, आज भी अपने अभिशप्त जीवन के साथ भटक रहे हैं, उनके सम्मुख ही पाँच हजार वर्ष व्यतीत हुए...क्या वे कालखण्डों के महत्व की घटनाओं से अनभिज्ञ होंगे? यायावर देश, काल और परिस्थिति की बेहतर समझ रखता है।

www.rajeevranjanprasad.com