निन्दा कहाँ से? अहं का स्त्रोत? || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2014)

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वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
४ अप्रैल २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

दोहा:
निन्दक तोहे नाक बिन, सोहै नकटी माहि ।
साधुजन गुरुभक्त जो, तिनमे सोहै नाही ॥

निन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय ।
बिन पानी-साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ॥ (संत कबीर)

प्रसंग:
निन्दा क्या है?
अहं का स्त्रोत क्या है?




कबीर साहब निंदकों को क्यों पास रखने के लिए कह रहे हैं?