वामनदेव ने राजा बलि का उद्धार कैसे किया? || आचार्य प्रशांत, भागवत पुराण पर (2017)

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शब्दयोग सत्संग
२६ जुलाई, २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नोएडा

वामनदेव की कथा
भागवत में ही भगवान के चौथे अवतार वामनदेव की कथा है। असुरों के राजा बलि जो भगवान के अनन्य भक्त प्रहलाद का पौत्र था ने यज्ञ का आयोजन किया। देवताओं के हित को देखकर भगवान ने वामन रूप अवतार लिया लिया और राजा बलि के यज्ञ में चले गए। दान मांगा, राजा बलि ने संकल्प लिया, गुरु शुक्राचार्य ने रोका फिर भी नहीं माने वामन को तीन पग भूमि दान दी। वामन देव ने दो ही पग में धरती और आकाश नाप लिया, तीसरा पग कहां रखूं वामन ने पूछा।

राजा बलि जो जानते थे कि देवताओं ने उनका यज्ञ रुकवाने के लिए छल किया है, फिर भी अपने संकल्प से नहीं हटे। भगवान उसे जीतने आए थे, उसने भगवान को जीत लिया। वामन ने जब बलि से पूछा कि तीसरा पैर कहा रखूं तो राजा बलि ने नि:संकोच खुद को आगे कर दिया। भगवान के पैरो के नीचे अपना सिर धर दिया। भगवान के भार से वह पाताल में चला गया लेकिन उसके सत्यव्रत और भक्तिभाव से विष्णु प्रसन्न हो गए तो वर मांगने को कहा।
बलि ने विष्णु को अपने राज्य का द्वारपाल बना लिया। भगवान भक्त के नगर की पहरेदारी करने लग गए।

प्रसंग:
वामनदेव ने राजा बलि का उद्धार कैसे किया?
क्या वामनदेव ने राजा बलि को परीक्षा लिया?
वामनदेव और राजा बलि का कथा किस बात की ओर संकेत करता है?

संगीत: मिलिंद दाते