संसार में सर्वत्र इतनी विविधता क्यों दिखती है? || आचार्य प्रशांत, अपरोक्षानुभूति पर (2018)

  • 5 years ago
वीडियो जानकारी:


प्रसंग:

दोषोऽपि विहितः श्रुत्या मृत्योर्मृत्युं स गच्छति।
इह पश्यति नानात्वं मायया वञ्चितो नरः॥४८॥

भावार्थ:
‘मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है’ ऐसा कहकर श्रुति ने दोष भी बतलाया है। मनुष्य माया से ठगा जाकर ही संसार में नानात्व देखता है।

~ अपरोक्षानुभूति

संसार में इतनी विविधता क्यों है?
मनुष्य कौन सी मूल अतृप्ति के कारण संसार में विविधता देखता है?
सबका संसार अलग-अलग क्यों होता है?


शब्दयोग सत्संग,
१९ अप्रैल, २०१८
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
संगीत: मिलिंद दाते

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