तुम्हारी सहमति के बिना ठगे नहीं जा सकते तुम || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2015)

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शब्दयोग सत्संग
८ जून २०१५
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

दोहा:
कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिए कोय ।
आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुःख होय ॥

प्रसंग:
संत कबीर ऐसा क्यों कह रहे कि परम के अलावा कोई ठगे तो दुःख होती है?
क्या अस्तित्व हमारी चाह पर है?
क्या चुनाव के अनुसार ही हम फल पाते?