पूर्ण मुक्ति कैसी? || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2017)

  • 5 years ago
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शब्दयोग सत्संग
२१ अप्रैल, २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से,
निर्ध्यातुं चेष्टितुं वापि यच्चित्तं न प्रवर्तते ।
निर्निमित्तमिदं किंतु निर्ध्यायेति विचेष्टते ॥३१॥

जीवनमुक्त का चित्त ध्यान से विरत होने के लिए और व्यवहार करने के लिए प्रवृत्त नहीं होता है, किन्तु निमित्त शून्य होने पर भी वह ध्यान से विरत भी होता है, और व्यवहार भी करता है।

शुद्धं बुद्धं प्रियं पूर्णं निष्प्रपंचं निरामयं ।
आत्मानं तं न जानन्ति तत्राभ्यासपरा जनाः ॥३५॥

आत्मा के सम्बन्ध में जो लोग अभ्यास में लग रहे हैं, वे अपने शुद्ध बुद्ध प्रिय पूर्ण निष्प्रपंच और निरामय ब्रह्म स्वरुप को बिलकुल ही नहीं जानते हैं।

प्रसंग:
पूर्ण मुक्ति कैसी?
ध्यान कैसे लगाए?
असली ध्यान क्या है?
निमित्त शून्य क्या होता है?
आत्मा माने क्या?
क्या संसार के माध्यम से आत्मा को पाया जा सकता है?

संगीत: मिलिंद दाते

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