मन में इतनी उलझनें क्यों? || आचार्य प्रशांत, गुरु कबीर पर (2018)

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वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग, अद्वैत बोध शिविर
२९ सितम्बर २०१८
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

दोहा:
कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन।
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन।। (गुरु कबीर)

प्रसंग:
मन क्या हैं?
मन उलझा हुआ क्यों रहता है?
उलझन क्या हैं?
मन में जो उलझनें रहती हैं उनको कैसे दूर करें?
मन अशांत क्यों रहता है?
मन को शान्ति कैसे मिले?
मन तनाव ग्रस्त क्यों रहता है?
मन में इतनी उलझनें क्यों रहती है?
मन में बहुत सारी परेशानियाँ क्यों चलती हैं?
मन बेचैनी से मुक्त कैसे हो?
मन की एकाग्रता से क्या आशय है?
मन हल्का और अनासक्त कैसे रहे?
मन प्रभावों से मुक्त कैसे हो?