जागरण न स्वप्न न सुषुप्ति न तुरीया || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2014)

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शब्दयोग सत्संग
३० मार्च, २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

अष्टावक्र गीता (अध्याय 19 श्लोक 5)
क्व स्वप्नः क्व सुषुप्तिर्वा क्व च जागरणं तथा।
क्व तुरियं भयं वापि स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥

अर्थ: अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या स्वप्न है और क्या सुषुप्ति तथा क्या जागरण है और क्या तुरीय अवस्था है अथवा क्या भय ही है?

प्रसंग:
हमें स्वप्नों से क्या सीख लेनी चाहिए?
आध्यात्मिक जागरण कैसे घटित होता है?
अध्यात्म में तुरिया अवस्था का क्या महत्त्व है?
स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीया में क्या अंतर है?