असुरों के वध के लिए श्रीगणेश ने लिए 4 अवतार

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सतयुग का महोत्कट विनायक अवतार

सतयुग में श्रीगणेश महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके पुत्र के रूप में पैदा हुए थे। इस युग में उनका नाम महोत्कट था। इस रूप में भगवान का वाहन सिंह (शेर) था और उनके दस हाथ थे। एक असुर के साथ युद्ध में गणेशजी का एक दांत टूट जाने की वजह से वे ढुण्ढिविनायक के नाम से भी काशी में स्थापित हुए।



त्रेतायुग का मयूरेश्वर अवतार

त्रेतायुग में श्रीगणेश एक विशेष उद्देश्य से भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र रूप में जन्में थे। इस युग में भगवान ने मयूरेश्वर के नाम से अवतार लिया। उनका वाहन मोर था। सिंधू नामक एक दैत्य हजारों वर्षों तक तपस्या करके बहुत ताकतवर और अजेय बन गया था। उसको मारने के लिए देवताओं की प्रार्थना पर गणेश ने ये अवतार लिया।



द्वापरयुग का गजानन अवतार

द्वापरयुग में भी श्रीगणेश गजानन के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस रूप में भगवान का वाहन मूषक था और उनके चार हाथ थे। कलियुग में लोग भगवान के इसी अवतार की पूजा-अर्चना करते हैं। भगवान ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुआ सिन्दूर नामक दैत्य का वध करने के कारण भगवान गजाजन का सिन्दूरवदन नाम पड़ा।



कलियुग का धूम्रकेतु अवतार

कलियुग में जब सभी जगह अधर्म बहुत बढ़ जाएगा। तब कलियुग के अंत में भगवान गजाजन धूम्रकेतु के नाम से प्रकट होंगे। कलियुग में उनका वाहन नीले रंग का घोड़ा होगा। क्रोध के कारण उनके शरीर से और आंखों से आग की वर्षा होती रहेगी। इस युग में भगवान कई पापियों का नाश करेंगे और शूर्पकर्ण और धूम्रवर्ण के नाम से भी प्रसिद्ध होंगे।