चुनाव बहिष्कार: नेहरू के बनाए रेलवे स्टेशन को बचाने की मुहिम
Villlagers bycott election to save railway station built by Nehru
प्रयागराज/इलाहाबाद। बात 1954 की है, देश में पं. जवाहर लाल नेहरू की सरकार थी और उस समय रेलवे मंत्रालय दिग्गज नेता लाल बहादुर शास्त्री देख रहे थे। नेहरू के संसदीय क्षेत्र फूलपुर के बेहद ही ग्रामीण इलाके दयालपुर में एक अस्थायी रेलवे स्टेशन को स्टेशन का स्वरूप देने की घोषणा हुई और मंत्रालय से मुहर लगते ही 6 महीने के अंदर दयालपुर स्टेशन अस्तित्व में आ गया। इस स्टेशन ने लगभग 2 दर्जन गांवों के पिछडेपन की दशा में काफी सुधार किया और यहां के लोगों के आवागमन का एकमात्र साधन बना। छात्रों का इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढने जाना हो, सब्जी बाजार में फसल लेकर, नौकरी पेशा से लेकर आवागमन के लिये लोगों के लिये रेलवे संजीवनी बन गयी। लेकिन अचानक 2005 में रेलवे ने इस स्टेशन को यह कहकर बंद कर दिया कि यहां से आमदनी नहीं हो रही है। हालांकि ग्रामीणों की अनुनय विनय और विरोध के चलते एक्का-दुक्का ट्रेन अभी तक रूकती रही लेकिन अब रेलवे इस स्टेशन के जर्जर भवन को भी खत्म करने जा रहा है। जिससे पिछले चौदह वर्ष से वनवास की तरह जी रहे ग्रामीणों का धैर्य जवाब दे गया और अब वह स्टेशन बचाने के लिऐ आंदोलन कर रहे हैं। 5 मई को ग्रामीणों ने 15 गांवों की महापंचायत बुलाई थी, जिससे निर्णय लिया गया कि एक भी ग्रामीण इस बार लोकसभा चुनाव में वोट नहीं करेगा और यह पूरा इलाका चुनाव बहिष्कार करेगा। ग्रामीणों का एक ही नारा है अगर स्टेशन नहीं, तो वोट नहीं।
प्रयागराज/इलाहाबाद। बात 1954 की है, देश में पं. जवाहर लाल नेहरू की सरकार थी और उस समय रेलवे मंत्रालय दिग्गज नेता लाल बहादुर शास्त्री देख रहे थे। नेहरू के संसदीय क्षेत्र फूलपुर के बेहद ही ग्रामीण इलाके दयालपुर में एक अस्थायी रेलवे स्टेशन को स्टेशन का स्वरूप देने की घोषणा हुई और मंत्रालय से मुहर लगते ही 6 महीने के अंदर दयालपुर स्टेशन अस्तित्व में आ गया। इस स्टेशन ने लगभग 2 दर्जन गांवों के पिछडेपन की दशा में काफी सुधार किया और यहां के लोगों के आवागमन का एकमात्र साधन बना। छात्रों का इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढने जाना हो, सब्जी बाजार में फसल लेकर, नौकरी पेशा से लेकर आवागमन के लिये लोगों के लिये रेलवे संजीवनी बन गयी। लेकिन अचानक 2005 में रेलवे ने इस स्टेशन को यह कहकर बंद कर दिया कि यहां से आमदनी नहीं हो रही है। हालांकि ग्रामीणों की अनुनय विनय और विरोध के चलते एक्का-दुक्का ट्रेन अभी तक रूकती रही लेकिन अब रेलवे इस स्टेशन के जर्जर भवन को भी खत्म करने जा रहा है। जिससे पिछले चौदह वर्ष से वनवास की तरह जी रहे ग्रामीणों का धैर्य जवाब दे गया और अब वह स्टेशन बचाने के लिऐ आंदोलन कर रहे हैं। 5 मई को ग्रामीणों ने 15 गांवों की महापंचायत बुलाई थी, जिससे निर्णय लिया गया कि एक भी ग्रामीण इस बार लोकसभा चुनाव में वोट नहीं करेगा और यह पूरा इलाका चुनाव बहिष्कार करेगा। ग्रामीणों का एक ही नारा है अगर स्टेशन नहीं, तो वोट नहीं।
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