विक्रमादित्य का सिंहासन - जिसे हम भुला चुके है | अर्था । आध्यात्मिक विचार

  • 5 years ago
राजा विक्रमादित्य उज्जैनी का शासक था, जो बुद्धिमान और सबसे उदार राजा के रूप में प्रसिद्ध था. आपने निश्चित रूप से इस उदार राजा के कारनामों पर आधारित कई कहानियों को सुना होगा या पढ़ा होगा। यह कहा जाता है कि उसके सिंहासन राजा कि तरह ही शानदार था। इस विडियो में हम उसी सिंहासन के बारे में बताने वाले जिसे सबने भुला दिया है


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१ राजा विक्रमादित्य और उसके सिंहासन के बारे में आख्यान, लोकगीत और साहसिक कथाओं के रूप में प्रसिद्ध है।

२ ये आख्यान मूल 'विक्रम चरित' जो 11 वीं सदी की है उसके माध्यम से आपके सामने लेकर आये है

३ यह एक साधारण सिंहासन नहीं है इसे भगवान इंद्र ने विक्रमादित्य के ज्ञान और अंतर्दृष्टि के लिए उपहार में दे दिया था

४ गाथाओं में कहा जाता है कि यह सिंहासन भगवान शिव का था जिन्होंने इसे इंद्र को दिया था

५ सिंहासन भव्य था और उसके क़दमो पर सुंदर बत्तीस मूर्तिया जो सजीव होने का भास दिलाती

६ यह मुर्तिया देवी पार्वती कि अप्सराएं थी, जो कि एक अभिशाप के कारण इस सिंहासन के मूर्तियों में बदल गई थी

७ यह शुद्ध सोने से बना हुआ था और इसके विभिन्न भाग अमूल्य रत्नों से सजाये गए थे

८ उज्जैनी के विद्वानों ने विक्रमादित्य की मौत के बाद, उसके बराबर का कोई योग्य राजा न होने के कारण उसे दफनाने का फैसला किया

९ बाद में राजा भोज ने विक्रमादित्य के रूप में सक्षम बनने की दिशा में काम किया। उन्होंने शापित अप्सराओं को मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी

१० सिर्फ सबसे महान राजा ही इस सिहांसन पर बैठने योग्य है जिसमे १००० वर्षो तक राज्य करने की क्षमता है

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