तोड दे बेढिया अपनें हलातो की, कि अभी तो तेरी पहचान बाकी है ! सिर्फ मुट्ठी भर जमीन ही हुए है तेरे, कि अभी तो सारा जहान बाकी है ! ना रोक तु खुद को मजबुरीयो के सामने, अभी तो न जाने कितने इनतीहान बाकी है ! है अगर तेरी यही तकदीर तो इसे बदल, और हाथों की लकीरों से आगे निकल ! ना हार है तेरी किसी से नही तेरी किसी से जंग, तुझसे ही तेरी जीत है तेरे साथ ही है तेरी जंग ! तू खुद की तलाश में निकल... ….. (Dipak Singh)