Hanumanji Hanumanji Daya Bhakton Peh*भौम प्रदोष*27-2-2018

  • 6 years ago
http://www.bhajansandhya.com/bhajan/from-film/aaj-andhere-mein-hai-hum-insaan-lyrics.html
Aaj andhere mein hai hum insaan,
gyaan ka sooraj chamaka de Bhagwan
Aaj andhere mein hai hum insaan,
gyaan ka sooraj chamaka de Bhagwan

Bhatak rahe hamen raah dikha de,
Bhagwan raah dikha de
Bhatak rahe hamen raah dikha de,
Bhagwan raah dikha de

Kadam kadam par kiran bichha de,
bhagavan kiran bichha de
Kadam kadam par kiran bichha de,
bhagavan kiran bichha de

In akhiyan ko prabhu kara de
in akhiyan ko prabhu kara de
jyoti se pahachaan
jyoti se pahachaan

Aaj andhere mein hai hum insaan,
gyaan ka sooraj chamaka de Bhagwan

Hum to hai santaan tihaari,
prabhu santaan tihaari
Hum to hai santaan tihaari,
prabhu santaan tihaari

Teri daya ke ham adhikaari,
prabhu hai ham adhikaari
teri daya ke ham adhikaari,
prabhu hai ham adhikaari

Duniya hove sukhi hamaari,
duniya hove sukhi hamaari,
aisa de varadaan
aisa de varadaan

Aaj andhere mein hai hum insaan
gyaan ka sooraj chamaka de Bhagwan

http://amarkatha.in/mangal_pradosh_vrat1.html
मंगलवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को मंगल प्रदोष या भौम प्रदोष कहते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है -

एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी। एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची।

हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे?

पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज।

हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे।

वृद्धा दुविधा में पड़ गई। अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज। लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी।

साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।

यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया।

वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई।

इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।

इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ।

लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी।

हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।

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