एक बार राधा जी प्रसन्न हुई तो सोचने लगी कि मेरे जैसी कोई सखी तो मे उसके साथ खेलती तो इतना सोचते ही उनके तो उनके अंग से एक सखी प्रकट किया जो ललिता जी बन गई वो उनकी अंतरंगा सखी है । राधा कृष्ण का जो विस्तार है उसमे ये सखिया दो रूपां से आती है । पहली होती है । खंडिता दशा.जब राधा माधव निकुंज में जो लीला करते है । तो ये राधा जी का पक्ष लेती है । और जो दूसरी प्रकार की है वो भगवान कृष्ण का पक्ष लेती है । राधा जी की आलोचना करती है । पर ये सब लीला है । उनकी दृष्टिी में राधा कृष्ण एक है । उनके मन में जलन नहीं होती, क्योंकि राधा जी ही सब की आराध्या है । वो कृष्ण का संग कभी नहीं चाहती है । उन्हें राधा कृष्ण को संग देख कर ही सुख मिलता है । ऐसी त्यागमयी गोपियाँ है । ऐसे ही हर गोपी का वर्णन आता है ।तो ललिता जी सबसे प्रधान सखी है । जो कि सर्वश्रेष्ठ है । राधा जी से २७ (सत्ताइस) दिन बडी है । इनकी आयु “चौदह वर्ष आठ माह” है । और राधा जी से बडी है । इनका एक नाम “अनुराधा” है. हर सखी का अलग परिधान है । ये कोई सामान्य नहीं है । संत गोपी भाव को पाने के लिए तपस्या करते है.ललिता जी की आज्ञा बिना रास में प्रवेश नहींजब रास लीला शुरू हुई तो करोंडों सखियाँ थी, ये पूर्व जन्म के संत, वेदों की ऋचाए थी, जिन्हेांनें भगवान से उनका साथ विहार मागा था तो जब रास शुरू होता है । उसमें हर एक का प्रवेष नहीं था पुरूषों का प्रवेश नहीं था, ललिता जी द्वार पर खडी थी,ललिता जी की आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता था. जब भगवान शिव आए तो ललिता जी ने मना कर दिया.तो भगवान शिव ने कहा - कि कृष्ण हमारे आराध्यहै ।तो ललिता जी ने कहा - कि यहा ब्रज में कृष्ण के अलावा और कोई प्रवेश नहीं पा सकता.तो शिव जी ने कहा - मै क्या करू ?तो ललिता जी ने उन्हें गोपी का श्रृगांर करवाया, चोली पहनाया कानों में कर्ण फूल, और घूघट डाला. कानों में युगल मंत्र दिया. तब प्रवेश हुआ.तो कहने का अभिप्राय ललिता जी शिव जी की गुरू हो गई, क्योकि युगल मंत्र का उपदेश दिया. तो सखी को केाई साधारण नहीं है । बड़े-बड़े ऋषि, मुनि जिनकी आराधना करते है ।ऐसी वे दिव्य और अलौकिक गोपियाँ है. तो गोप भाव अति उच्च है.ललिता जी की अंग - क्राति “गौरोचन” के समान है, वर्ण – लालिमा युक्त “पीले रंग” का वर्ण है. वस्त्र - ललिता जी “मोर पंख वाले” क्रांतिवस्त्रों केा धारण करती है ।
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